इंदौर। वर्ष 1918 में इंदौर में ही महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के अपने सपने की घोषणा की थी। देश आजाद हुआ और इस घोषणा को 100 साल बीत गए। कोई भी सरकार बापू के इस सपने को साकार नहीं कर पाई।
यह कहना है हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी का। आजादी तक राष्ट्रभाषा कही जाने वाली हिंदी संविधान लागू होते ही राजभाषा बन गई। इंदौर में भी महात्मा गांधी मार्ग एमजी रोड हो गया और रवींद्रनाथ टैगोर मार्ग बन गया आरएनटी मार्ग। हिंदी के प्रति अनुराग तो रहा, लेकिन इसे राष्ट्रभाषा बनाने की पहल नहीं हो पाई।
वे लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करना उसे खुद पर थोपने के समान मान रहे थे, जबकि इसके पीछे की असल वजह राजनीति थी। स्वतंत्रता के पहले हमारा देश एक था, लेकिन इसके बाद सत्ता में आए लोगों ने इसे बांटा ही है। किसी भी देश की एक ही राष्ट्रभाषा होना चाहिए और हमारे देश में वह हिंदी होना चाहिए।
यह कहना है हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी का। आजादी तक राष्ट्रभाषा कही जाने वाली हिंदी संविधान लागू होते ही राजभाषा बन गई। इंदौर में भी महात्मा गांधी मार्ग एमजी रोड हो गया और रवींद्रनाथ टैगोर मार्ग बन गया आरएनटी मार्ग। हिंदी के प्रति अनुराग तो रहा, लेकिन इसे राष्ट्रभाषा बनाने की पहल नहीं हो पाई।
वे लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करना उसे खुद पर थोपने के समान मान रहे थे, जबकि इसके पीछे की असल वजह राजनीति थी। स्वतंत्रता के पहले हमारा देश एक था, लेकिन इसके बाद सत्ता में आए लोगों ने इसे बांटा ही है। किसी भी देश की एक ही राष्ट्रभाषा होना चाहिए और हमारे देश में वह हिंदी होना चाहिए।
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