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लोकतंत्र या “लोकतंतर” - एक त्रुटि मात्र या गंभीर असावधानी ?

 लोकतंत्र या “लोकतंतर” - एक त्रुटि मात्र या गंभीर असावधानी ? 

संसद परिसर में आयोजित लोकतंत्र बचाओ आंदोलन के बैनर पर स्पेलिंग मिस्टेक ने राजनीतिक सामाजिक भाषाई क्षेत्रों में नई बहस छिड़ी


जब कोई शब्द संविधान राजनीति आध्यात्मिकता या जनता की चेतना से जुड़ा हो तब उसमें एक मामूली सी त्रुटि भी व्यापक बहस का विषय बन जाती है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं की गोंदिया महाराष्ट्र 

गोंदिया - वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियाँ में भारत ही एक ऐसा अकेला देश है,जहां हजारों की संख्या में भाषाएँ, बोलियां है जो भारत की बेहद खूबसूरत पहचान है,फिर भी उसमें से 22 भाषाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है,यानें सूची में दर्ज है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूँ कि फिर भी हर भाषा बोली का सम्मान भारत में है, यानें अगर किसी भी बोली भाषा में उसका सम्मान,आध्यात्मिकता जातिवाचक या उस समाज की चेतना से जुड़ा कोई शब्द हो व उसे त्रुटि पूर्ण रूप से लिखा या बोला जाए तो, द्वेष बढ़ने की संभावना होगी, जिसमें दंगा दुश्मनी विवाद तक हो सकता है इसलिए सार्वजनिक आंदोलन स्थान बैनरों प्रचार माध्यमों में शब्दों का चयन सोच समझ कर करना चाहिए।मुझे इसका प्रेक्टिकल अनुभव है,मैं एक धार्मिक वर्सीमहोत्सव में बैठा था, वहां देखा कि गायनकर्ता व आयोजनकर्ता अलग-अलग भाषी थे,वहां गायनकर्ता ने एक ऐसा शब्द बोला और उसपर प्रेशर देकर बोल रहा था, जो आयोजनकर्ता समाज की भाषा में गाली थी सब हक्के- बक्के रह गए तो किसी ने गायककर्ता के कान में जाकर इस शब्द का अर्थ बताया तो गायनकर्ता ने अपनी गलती सुधार ली। आज हम शब्दों की सतर्कता की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 24 जुलाई 2025 को मैंने टीवी चैनल पर देखा कि संसदभवन परिसर में कांग्रेस सहित अनेको पार्टियों के बड़े-बड़े फ्रंटलाइन लीडर नेता लोकतंत्रबचाओ आंदोलन कर रहे थे, तो मेरा ध्यान उनके बैनर पर गया जहां लिखा था एसआईआर "लोकतंतर" पर वार मैं हका- बक़ा रह गया, फिर सोशल मीडिया खोला तो वहां इस घटना पर धूममची हुई थी, इसीलिए मैंने इस विषय को आर्टिकल के लिए चुना। हालांकि 25 जुलाई 2025 को फिर संसद भवन में आंदोलन देखा तो यह त्रुटि ठीक कर बैनर पर "लोकतंत्र" लिखा था, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, लोकतंत्र या “लोकतंतर” एक त्रुटि मात्र या गंभीर असावधानी? 

साथियों बात अगर हम संसद भवन परिसर में हुए लोकतंत्र बचाओ आंदोलन में लोकतंत्र की जगह लिखने का प्रभाव और उसके परिणाम की करें तो भारतीय लोकतंत्र की आत्मा ही उसकी जनता में निहित है। जब भी इसकी गरिमा पर आंच आती है, तो देश के जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक आवाज़ उठाते हैं। लेकिन जब इसी लोकतंत्र को बचाने के नाम पर आयोजित आंदोलन में उसके नाम की ही वर्तनी गलत हो जाए-“लोकतंत्र” के स्थान पर “लोकतंतर” लिखा जाए-तो सवाल केवल भाषा या व्याकरण का नहीं रह जाता, बल्कि यह चूक प्रतीक बन जाती है गंभीर असावधानी और खोखले नारों की।हाल ही में संसद परिसर में “सांसद परिवार” द्वारा आयोजित "लोकतंत्र बचाओ आंदोलन" के बैनर पर हुई ऐसी ही गलती ने राजनीतिक, सामाजिक और भाषाई हलकों में नई बहस छेड़ दी है। राजनीतिक संदेश और उसकी धार कुंदराजनीतिक आंदोलनों में प्रतीक और भाषा ही सबसे बड़े हथियार होते हैं।"लोकतंत्र बचाओ"का नारा सत्ता के विरुद्ध एक गंभीर प्रश्नचिन्ह होता है। लेकिन अगर यही नारा टाइपो की वजह से"लोकतंतर बचाओ" बन जाए, तो विरोध की धार कमजोर हो जाती है। राजनीतिक विरोध का प्रभाव इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह कितना व्यवस्थित, संजीदा और संगठित दिखता है। बैनर पर ऐसी गलती इस गंभीर आंदोलन को हास्यास्पद बना देती है। 

साथियों बात अगर हम लोकतंत्र बनाम लोकतंत्र या“लोकतंतर” यह भूल या लापरवाही की करें तो,लोकतंतर’ बनाम ‘लोकतंत्र’-एक भाषाई विश्लेषणहिंदी में “तंत्र” शब्द का अर्थ होता है-व्यवस्था याप्रणाली। “लोक” और “तंत्र” मिलकर बना“लोकतंत्र”अर्थात् जनता की शासन व्यवस्था लेकिन “तंतर” शब्द का कोई स्वतंत्र या प्रचलित अर्थ नहीं है।ऐसे में “लोकतंतर”न केवल गलत है, बल्कि भाषा की दृष्टि से एक निरर्थक शब्द है। यह भूल किसी आम कार्यक्रम में होती, तो शायद चर्चा तक नहीं होती। पर यह आंदोलन लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर आयोजित किया गया था। और इसी का नाम ही विकृत हो जाए,तो यह विडंबना नहीं तो और क्या है?,भूल या बेपरवाही?ज़ब देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था-संसद के सामने कोई राजनीतिक प्रदर्शन होता है, तो उससे जुड़े हर प्रतीक, हर शब्द और हर भाव का विशेष महत्व होता है। ऐसे में “लोकतंत्र” जैसा भारी-भरकम शब्द अगर “लोकतंतर” बन जाए, तो यह सामान्य टाइपो नहीं मानी जा सकती। यह या तो तैयार करने वालों की अज्ञानता दर्शाता है या फिर गंभीर लापरवाही। 

साथियों बात अगर हम सोशल मीडिया पर आलोचना व्यंग्य सहित तीखी प्रतिक्रिया की करें तो,इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर लोगों ने “लोकतंतर” को लेकर मीम्स बनाए, वीडियो बनाए और व्यंग्यात्मक टिप्पणियों से इस आंदोलन की गंभीरता पर सवाल उठाए। विपक्षियों को भी बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया,“जो लोग लोकतंत्र की रक्षा की बात कर रहे हैं, उन्हें उसकी सही स्पेलिंग तक नहीं आती।”इस गलती ने सीधे-सीधे कांग्रेस पार्टी और उससे जुड़े सांसद परिवार की छवि पर चोट पहुंचाई है। आंदोलन जितना महत्वपूर्ण था, उतनी ही जरूरी थी उसकी पेशकश की परिपक्वता। देश के जागरूक वर्ग ने यह सवाल भी उठाया कि क्या आज के राजनेताओं की भाषा, ज्ञान और प्रस्तुतिकरण पर इतना कम ध्यान रह गया है कि वे देश के मूल विचारों के साथ भी ऐसी असावधानी बरतते हैं? 

साथियों बात अगर हम क्या यह अज्ञानता की निशानी है? और भविष्य के लिए सबक सीखने की करें तो, यह सवाल अहम है,क्या यह गलती मात्र एक टाइपिंग एरर थी या फिर यह दर्शाता है कि आज का राजनीतिक नेतृत्व भाषा, विचार और संवैधानिक शब्दावली के प्रति कितना सजग या लापरवाह हो गया है? जब नेताओं से भाषण, बैनर और संवाद की अपेक्षा की जाती है, तब यह जरूरी है कि वे न्यूनतम भाषाई योग्यता और सजगता प्रदर्शित करें। इस गलती से यह संदेश गया कि आज के जनप्रतिनिधि न तो आत्मनिरीक्षण कर रहे हैं और न ही तैयारी।भविष्य के लिए सबक, यह घटना सभी राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है कि वे केवल नारेबाज़ी से नहीं, बल्कि पूरी तैयारी,ज्ञान औरजागरूकता के साथ सामने आएं। (1) प्रस्तुति की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। (2) भाषाई शुद्धता को प्राथमिकता दी जाए। (3) प्रत्येक आंदोलन या विरोध की विश्वसनीयता उसमें दिखने वाली गंभीरता से तय होती है लोकतंत्र" की रक्षा केवल भाषणों, विरोध और आंदोलनों से नहीं होती, बल्कि उस सोच, भाषा और व्यवहार से होती है जिसमें वह व्यक्त होता है। “लोकतंतर” जैसा गलत शब्द केवल एक टाइपिंग मिस्टेक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक सोच में आई चूक का प्रतीक बन गया है। इसे केवल व्याकरण की भूल समझकर टालना नहीं चाहिए, बल्कि इसे आत्ममंथन का अवसर बनाना चाहिए कि क्या हम वाकई उस मूल भावना की रक्षा कर रहे हैं जिसे हम बचाना कहते हैं? 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि लोकतंत्र या “लोकतंतर” एक त्रुटि मात्र या गंभीर सावधानी?संसद परिसर में आयोजित लोकतंत्र बचाओ आंदोलन के बैनर पर स्पेलिंग मिस्टेक ने राजनीतिक सामाजिक भाषाई क्षेत्रों में नई बहस छिड़ी,ज़ब कोई शब्द संविधान राजनीति आध्यात्मिकता या जनता की चेतना से जुड़ा हो तब उसमें एक मामूली सी त्रुटि भी व्यापक बहस का विषय बन जाती है।


*-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318*

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