सरकार की खोखली नीतियों ने उच्च शिक्षितों को अधेड़ उम्र में पहुंचा दिया :-
' 25 सालों से लगातार अतिथि विद्वानों की उपेक्षा की गई है '
सरकारी महाविद्यालयों के अतिथि विद्वानों का विगत ढ़ाई दशक से कालखंड और प्रति कार्य दिवस पर शोषण हो रहा है। अब यदि इनकी जगह उच्च शिक्षा विभाग सहायक प्रोफेसर भर्ती 2022 के चयनितों की नियुक्ति करता है तो एक बार फिर पिछली कमलनाथ सरकार में फॉलेन आउट की बाढ़ - सी जो आ गई थी, वैसी ही स्थिति एक बार फिर मोहन सरकार में निर्मित हो जाएगी। क्योंकि सन 2019 में हुई सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति से लगभग 3000 अतिथि विद्वान बेरोजगार हो गए थे। उस समय इनका 4 माह शाहजहांनी पार्क भोपाल में आंदोलन भी चला था। तब पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान सहित बीजेपी के तमाम नेता इनके हितेषी बनकर आए दिन इनके आंदोलन स्थल पर जाकर इन्हें नियमित करवाने की डिगें मारते थे।
फिर 11सितंबर 2023 को शिवराज सरकार ने इनकी पंचायत करवाकर इन्हें उच्च शिक्षा विभाग का सबसे मजबूत अंग और सरकारी कर्मचारियों के समान तमाम सुविधाएं देने की घोषणाएं की। उस समय वर्तमान सीएम डॉ. मोहन यादव उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में मंच पर मौजूद थे। वहीं विगत महीनों में सहायक प्रोफेसरों के ट्रांसफर से इन्हें फॉलेन आउट भी किया गया। वास्तव में बीजेपी सरकार ने वादा करने के बाद भी इनका रोजगार छीनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। सत्र 2002 - 03 से आरंभ इस व्यवस्था ने इन उच्च शिक्षितों को अधेड़ उम्र में पहुंचा दिया है। नेट, सेट, पीएचडी जैसी अनिवार्य योग्यता और अनुभव अब इनके किसी काम का नहीं रहा है। सरकार द्वारा लंबे समय से इनके लिए ठोस नियम नहीं बनाने से अब ये दर - दर भटकने को मजबूर हो गए हैं।
मध्य प्रदेश अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया का इस संबंध में कहना है कि अधेड़ उम्र में हम अब कैसे सहायक प्राध्यापक परीक्षा पास कर पाएंगे। हमारी जिंदगी अल्प मानदेय में नियमित के समान सेवा देने में ही गुजर गई है। अब तो मोहन सरकार को मानवीय मूल्यों का ध्यान रखकर भविष्य सुरक्षित कर देना चाहिए।
संघर्ष मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी दुखी मन से बताया है कि अतिथि विद्वानों की सरकार द्वारा अनदेखी करना लोकतंत्र व संविधान के अनुसार न्यायसंगत नहीं है। अनेकों बार सरकार के नुमाइंदों द्वारा सरेआम मंच से घोषणाएं करने के बाद भी हम अनिश्चित फ्यूचर में सेवा दे रहे हैं। हमें ट्रांसफर और नवीन नियुक्ति से जब चाहे फॉलेन आउट कर देते हैं। जबकि अब भी 5000 अतिथि विद्वान पढ़ाने के अलावा महाविद्यालय के सभी कार्यों में सहभागिता निभाते हैं।


बिल्कुल सही एक सरकार का का पहला दायित्व होता है यदि किसी कर्मचारी के द्वारा 10 15 20 वर्षों तक उच्च शिक्षा विभाग जो की शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विभाग है उसमें यदि कार्य किया है पढ़ाने का लिखने का या खेल गतिविधियों या ग्रंथालय के रूप में तो वह एक अति महत्वपूर्ण कार्य की श्रेणी में आता है परंतु 20 वर्षों से अधिक का कार्यकाल रहा है मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार का शिवराज सिंह जी ने घोषणा की थी महापंचायत बुलाई सब कुछ किया कैबिनेट में भी पास कर दिया परंतु बीजेपी सरकार ने लागू नहीं किया घोषणाएं तो भाजपा सरकार की अनगिनत है परंतु यह महत्वपूर्ण घोषणा भी अभी तक लागू नहीं हुई 40 50 45 की उम्र में उच्च शिक्षित अतिथि विद्वानों को हर क्षण डर रहता है नियमित प्राध्यापक के द्वारा हमारी नौकरी जा सकती है तो मध्य प्रदेश में इतना अंधकार क्यों जबकि भाजपा शासित हरियाणा राज्य में 5 वर्षों के अनुभव के आधार पर कार्यरत अतिथि विद्वानों का जिनका का नियमितीकरण किया गया है तो क्या मध्यप्रदेश में अलग संविधान है या यहां पर माननीय नरेंद्र मोदी जी का कानून लागू नहीं होता है जो उनके मुख्यमंत्री जी अपनी मनमानी कर रहे हैं🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤦🏼♂️🤦🏼♂️🤦🏼♂️🤦🏼♂️🤦🏼♂️
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