आईएमएफ द्वारा भारत के राष्ट्रीय खाते आँकड़ों को ‘सी’ ग्रेड दिए जाने का विवाद -विपक्ष का तंज राजनीति और संसद में सरकार का पक्ष-विस्तृत विश्लेषण
आईएमएफ द्वारा भारत के राष्ट्रीय खाते आँकड़ों को ‘सी’ ग्रेड दिए जाने का विवाद -विपक्ष का तंज राजनीति और संसद में सरकार का पक्ष-विस्तृत विश्लेषण
भारत क़ी अनुमानित जीडीपी 7.3 ट्रिलियन, अमेरिकी डॉलर विकास की तरफ इशारा कर रही हैं,तो आईएमफ ने डेटा क़ो ग्रेड "सी" रेटिंग क्यों दी?
आईएमफ जैसी संस्था किसी देश के राष्ट्रीय खाते आँकड़ों की गुणवत्ता को कमज़ोर वर्ग में रखे, तो वह वैश्विक नीति- निर्माताओं और निवेशकों की दृष्टि में चिंता का विषय बन जाता है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमफ) द्वारा भारत के नेशनल एकाउंट्स स्टेटसटिक्स को वर्ष 2025 के वार्षिक मूल्यांकन में ‘सी’ ग्रेड दिया जाना,भारत की आर्थिक विमर्श में अचानक एक प्रमुख विषय बन गया। राष्ट्रीय खाते आँकड़े किसी भी देश की आर्थिक सेहत, विकास उत्पादन,निवेश,उपभोग तथा आमदनी की संरचना को दर्शाते हैं,और इसलिए इन आँकड़ों की प्रामाणिकता को लेकर किसी भी प्रकार की विदेशी शंका स्वाभाविक रूप से बड़े राजनीतिक और आर्थिक तूफ़ान का कारण बनती है। यह आलोचना केवल एक तकनीकी अवलोकन नहीं थी,बल्कि इसने भारत की जीडीपी वृद्धि दर, सरकार की आर्थिक नीतियों, विपक्ष की प्रतिक्रिया और संसद में उठे सवालों तक व्यापक बहस को जन्म दिया हैँ।आईएमफ द्वारा दिया गया यह “सी” ग्रेड मुख्यतः उन सांख्यिकीय पद्धतिगत कमियों से जुड़ा है, जो भारत की तेज़ी से बदलती आर्थिक संरचना के अनुरूप अपने राष्ट्रीय खातों को नियमित रूप से अपडेट करने में सामने आती रही हैं। यह स्थिति न तो भारत-विशेष है और न ही किसी आर्थिक संकट की ओर संकेत;लेकिन मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं क़ी यह तथ्य अवश्य है कि आईएमफ जैसी संस्था किसी देश के राष्ट्रीय खाते आँकड़ों की गुणवत्ता को कमज़ोर वर्ग में रखे, तो वह वैश्विक नीति -निर्माताओं और निवेशकों की दृष्टि में चिंता का विषय बन जाता है।
साथियों बात अगर हम आईएमफ ने भारत को ‘सी’ ग्रेड क्यों दिया,पद्धति,चुनौतियाँ और तकनीकी कमजोरियाँ समझने की करें तो,आईएमफ की ग्रेडिंग प्रणाली में“सी” श्रेणी वह है, जहाँ आँकड़ों की उपलब्धता तो पर्याप्त होती है,लेकिन उनकी विश्वसनीयता,सटीकता,पारदर्शिता और तुलनात्मकता पर सवाल खड़े होते हैं। भारत को यह ग्रेड मुख्यतः चार प्रमुख कारणों से दिया गया(1)भारत का आधार वर्ष जो जीडीपी तथा अन्यराष्ट्रीय खाते आँकड़ों की गणना के लिए उपयोग होता है,अभी भी 2011- 12 है।यह वह समय था जब भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना आज की तुलना में कहीं भिन्न थी। डिजिटल अर्थव्यवस्था, ई-कॉमर्स,स्टार्टअपपारिस्थितिकी तंत्र, गिग- इकोनॉमी,ऑनलाइन सेवाएँ, स्मार्ट-इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्लेटफ़ॉर्म-आधारित आर्थिक गतिविधियों का आकार आज बहुत अधिक है,जबकि 201-12 का फ्रेमवर्क उन्हें ठीक से प्रतिबिंबित नहीं कर पाता।इसलिए आईएमफ का कहना है कि इतने पुराने आधार वर्ष के कारण वास्तविक आर्थिक गतिविधियों का सही मूल्यांकन बाधित होता है। (2)आईएमफ ने भारत के डेफ्लेटर यांने नॉमिनल जीडीपी को रियल जीडीपी में बदलने के लिए उपयोग होने वाले मूल्य सूचकांकों में कमियाँ बताईं। विकसित देशों में प्रोडूसर प्राइस इंडेक्स आधारित व्यापक मूल्य प्रणाली प्रचलित है, जबकि भारत मुख्यतः होलसेल प्राइस इंडेक्स पर निर्भर है।इससे जीडीपी की वास्तविक वृद्धि का अनुमान प्रभावित हो सकता है।(3) बड़ी कमजोरी अनौपचारिक क्षेत्रकी वास्तविक हिस्सेदारी और गतिविधि का अपूर्ण कवरेज है।भारत की अर्थव्यवस्था में अनौपचारिकता की मात्रा बहुत अधिक है, और आँकड़ा संग्रहण की पारंपरिक पद्धतियाँ इस विविध और बदलते कार्यक्षेत्र को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं कर पातीं।आईएमफ का कहना है कि उत्पादन और व्यय आधारित जीडीपी अनुमान में पाए जाने वाले अंतर भी इसी पद्धतिगत कमजोरियों का संकेत हैं।(4) आलोचना तिमाही आँकड़ों की गुणवत्ता और सीजनल एडजस्टमेंट्स, इंस्टिट्यूशनल सेक्टर ब्रेकडाउन और हाई - फ्रेक्वेसी डेटा हारमोनिसाशन की अनुपस्थिति से जुड़ी है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाएँ नियमित रूप से इन तकनीकों का उपयोग करती हैं ताकि आँकड़े उन उतार-चढ़ावों से मुक्त रहें जो केवल मौसम, त्योहारी सीज़न या अस्थायी आर्थिक घटनाओं के कारण उत्पन्न होते हैं।आईएमफ ने यह भी ध्यान दिलाया कि भारत ने 2015 के बाद से आधार वर्ष बदला ही नहीं,जबकि कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ हर पाँच वर्ष में ऐसा करती हैं। आईएमफ का निष्कर्ष यही था कि भारत की राष्ट्रीय खातों की संरचना डेटा उपलब्धता के मामले में व्यापक है, लेकिन डेटा गुणवत्ता और आधुनिकता अपेक्षाकृत कमजोर है, जिसके कारण उसे “सी” ग्रेड दिया गया।
साथियों बात अगर हम विपक्ष ने सरकार पर तंज क्यों कसा, राजनीतिक प्रतिध्वनि और बढ़ती बहस को समझने की करें तो,आईएमफ की रिपोर्ट का राजनीतिक प्रभाव तत्काल दिखाई दिया। कांग्रेस ने इस ग्रेडिंग का उपयोग सीधे-सीधे सरकार की आर्थिक विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाने के लिए किया।उनका आरोप था कि जबआईएमफ ही डेटा में कमजोरी बता रहा है तो सरकार द्वारा प्रस्तुत की जा रही 8.2 प्रतिशत जैसी उच्च जीडीपी वृद्धि दर कैसे विश्वसनीय मानी जाए?कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि सरकार काग़ज़ी विकास दिखा रही है, जबकि वास्तविकता में रोजगार, ग्रामीण आय और घरेलू उपभोग में ठोस सुधार नहीं दिखता। उन्होंने टिप्पणी की कि यदि आईएमफ यह कह रहा है कि राष्ट्रीय खाते आँकड़ों में पद्धतिगत कमजोरियाँ हैं, तो जीडीपी वृद्धि दर को बढ़ा- चढ़ाकर दिखाया जाना आंकड़ों का सौंदर्यीकरण है।विपक्ष का दूसरा तर्क यह था कि आईएमफ की यह आलोचना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आर्थिक विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकती है, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और वैश्विक बाज़ारों में भरोसा प्रभावित हो सकता है। उनका कहना था कि सरकार को आत्मसंतोष छोड़कर डेटा पारदर्शिता को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि आर्थिक वृद्धि की असली परीक्षा आमनागरिकों के जीवन-स्तर में सुधार और रोजगार सृजन से होती है, न कि केवल आँकड़ों के चमकदार प्रस्तुतिकरण से।विपक्ष का यह हमला सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि आर्थिक भी था,क्योंकि आईएमफ वैश्विक संस्थाओं में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, और उसका मूल्यांकन अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और रेटिंग एजेंसियों के लिए संकेतक का काम करता है।
साथियों बात अगर हम वित्त मंत्री द्वारा बुधवार 3 दिसंबर 2025 को संसद में दिए गए जवाब, आईएमफ ने जीडीपी ग्रोथ पर सवाल नहीं उठाया, केवल आधार वर्ष पुराना है इसको समझने की करें तो,विपक्ष की तीखी आलोचना और मीडिया में बढ़ी चर्चा के बीच वित्त मंत्री ने संसद में पूर्ण स्पष्टता के साथ सरकार की स्थिति रखी।उन्होंने कहा कि आईएमफ का “सी” ग्रेड किसी भी रूप में भारत की जीडीपी वृद्धि दर या उसकी आर्थिक उपलब्धियों को चुनौती नहीं देता।उन्होंने जोर देकर कहा कि आईएमफ की टिप्पणी मात्र पद्धति और तकनीकी संरचना पर केंद्रित है,न कि भारत की आर्थिक परफॉर्मेंस पर।उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार ने पहले ही आधार वर्ष बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और 2022-23 को नया आधार वर्ष बनाने के निर्णय पर काम तेज़ी से चल रहा है।यह अपडेट फरवरी 2026 से लागू होगा,जो भारत के राष्ट्रीय खातों को अधिक आधुनिक, वैज्ञानिक और वैश्विक मानकों के अनुरूप बना देगा।वित्तमंत्री ने यह भी कहा कि आईएमफ ने भारत की आर्थिक मजबूती, वित्तीय स्थिरता, निजी निवेश, डिजिटल भुगतान प्रणाली और बैंकिंग क्षेत्र की लचीलापन की विशेष सराहना की है। उनका कहना था कि भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती को दुनियाँ मान रही है और “सी” ग्रेड को गलत तरीके से राजनीतिक विवाद में घसीटा जा रहा है।उन्होंने स्पष्ट किया कि आईएमफ स्वयं भारत की जीडीपी वृद्धि दर को उच्च और स्थिर मानता है, और यह स्थिति इसलिए संभव है क्योंकि भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत है।इसलिए,“सी”ग्रेड को जीडीपी के अविश्वसनीय होने के रूप में प्रस्तुत करना सटीक रूप से दुष्प्रचार है।
साथियों बात अगर हम राष्ट्रीय और वैश्विक महत्व के रूप में इस विवाद से उत्पन्न बड़े प्रश्ननों को समझने की करें तो यह विवाद देश को एक महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर ले जाता है क़ि क्या आर्थिक विकास को केवल आँकड़ों से मापा जा सकता है,या आंकड़ों की गुणवत्ता विकास की विश्वसनीयता का मूल आधार है?आईएमफ की टिप्पणी इस बात का संकेत है कि आर्थिक आँकड़ों का आधुनिक, पारदर्शी और अद्यतन होना आवश्यक है। भारत जैसी विशाल और बहुआयामी अर्थव्यवस्था के लिए यह चुनौती और भी बड़ी है।वैश्विक स्तर पर भारत का महत्व बढ़ा है- विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, तेज़ी से उभरती बाजार शक्ति, रणनीतिक खिलाड़ी, तकनीकी केंद्र और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का नया केंद्र,ऐसे में यह अनिवार्य है कि भारत अपनी आर्थिक सांख्यिकी को दुनिया की सर्वोत्तम प्रणालियों के अनुरूप बनाए रखे। निवेशक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, वैश्विक बैंक और रेटिंग एजेंसियाँ डेटा विश्वसनीयता पर बहुत निर्भर करती हैं। यदि एक बड़ा देश अपनी आर्थिक वास्तविकता को कमज़ोर सांख्यिकी के कारण सही ढंग से प्रस्तुत न कर सके, तो उसके ऊपर अंतरराष्ट्रीय भरोसा प्रभावित होता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,आंकड़ों की गुणवत्ता ही आर्थिक विश्वसनीयता की नींवआईएमफ की “सी” ग्रेडिंग भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती पर प्रश्नचिह्न नहीं है,लेकिन यह संदेश अवश्य है कि आँकड़ों की गुणवत्ता में निरंतर सुधार आवश्यक है। विपक्ष की आलोचना अपना राजनीतिक पक्ष दर्शाती है,जबकि सरकार का जवाब यह बताता है कि समाधान की दिशा में कदम उठाए जा चुके हैं।अंतरराष्ट्रीय स्तरपर यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि किसी भी आधुनिक अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य केवल जीडीपी वृद्धि से नहीं, बल्कि विश्वसनीय, पारदर्शी और अद्यतन आंकड़ों की नींव पर टिका होता है।भारत का आने वाला आधार-वर्ष अपडेट उन्नत पद्धतियाँ,व्यापक मूल्य सूचकांक प्रणाली और परिवर्तनशील आर्थिक संरचना का वैज्ञानिक प्रतिबिंब ये सभी कदम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भविष्य में भारत वैश्विक आर्थिक मूल्यांकन में न केवल बेहतर स्कोर पाए,बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और नीति-निर्माताओं के बीच और भी अधिक मजबूत विश्वास स्थापित करे।
*-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465*




Comments
Post a Comment