धन से बड़ा कौन?
दुनिया में धन खूब बढ़े। इतना बढ़े कि देवता तरसें पृथ्वी पर जन्म लेने को.. लेकिन धन ही सब कुछ नहीं है। कुछ और भी बड़े धन हैं। ध्यान हो तो धन भी सुंदर है। ध्यानी के पास धन होगा, तो जगत का हित ही होगा, कल्याण ही होगा। क्योंकि धन ऊर्जा है। धन शक्ति है। धन बहुत कुछ कर सकता है। मैं धन विरोधी नहीं हूं। मैं उन लोगों में नहीं, जो समझाते हैं कि धन से बचो। भागो धन से। वे कायरता की बातें करते हैं। मैं कहता हूं जियो धन में, लेकिन ध्यान का विस्मरण न हो। ध्यान भीतर रहे, धन बाहर। फिर कोई चिंता नहीं है। तब तुम कमल जैसे रहोगे, पानी में रहोगे और पानी तुम्हें छुएगा भी नहीं।
ध्यान रहे, धन तुम्हारे जीवन का सर्वस्व न बन जाए। तुम धन को ही इकट्ठा करने में न लगे रहो। धन साधन है, साध्य न बन जाए। धन के लिए तुम अपने जीवन के अन्य मूल्य गंवा न बैठो। तब धन में कोई बुराई नहीं है। मैं चाहता हूं कि दुनिया में धन खूब बढ़े, इतना बढ़े कि देवता तरसें पृथ्वी पर जन्म लेने को। लेकिन धन सब कुछ नहीं है। कुछ और भी बड़े धन हैं। प्रेम का, सत्य का, ईमानदारी का, सरलता का, निर्दोषता का, निर-अहंकारिता का। ये धन से भी बड़े धन हैं। कोहिनूर फीके पड़ जाएं, ऐसे भी हीरे हैं- ये भीतर के हीरे हैं।
यहां मित्रता पैसे की है। संबंध पैसे के हैं। हम धन का एक ही अर्थ लेते हैं कि दूसरों की जेब से निकाल लें। इससे कुछ हल नहीं होता। धन उसकी जेब से तुम्हारी जेब में आ जाता है, फिर तुम्हारी जेब से दूसरा कोई निकाल लेता है। धन जेबों में घूमता रहता है, लेकिन धन पैदा नहीं होता। अभी हमने यह नहीं सीखा कि धन का सृजन कैसे किया जाता है। अभी धन हमारे लिए शोषण का ही अर्थ रखता है। जो सच में समृद्ध देश हैं, उन्हें पता है कि धन शोषण नहीं, सृजन है। हमारा देश किसी देश से गरीब नहीं है, लेकिन समस्या यह है कि हम मूढ़तापूर्ण बातों को महत्वपूर्ण मानते हैं।
यहां दरिद्र को एक नया नाम दे दिया गया- दरिद्र नारायण। जब तुम दरिद्र को नारायण कहोगे, तो उसकी दरिद्रता मिटाओगे कैसे? भगवान को कोई मिटाता है क्या? भगवान को तो बचाना पड़ता है। दरिद्र नारायण की तो पूजा करनी होती है। दरिद्र नारायण के पैर दबाओ। उसे दरिद्र रखो, नहीं तो वह नारायण नहीं रह जाएगा। हम अगर गरीब की पूजा करेंगे, तो अमीर कैसे बनेंगे। अगर हम धन का तिरस्कार करेंगे, तब तो धन को पैदा करना ही बंद कर देंगे।
हां, धन को शोषण से मत पैदा करना। धन का सृजन करने का तरीका खोजो। यह तो हमारे हाथ में है- मशीनें हैं, तकनीक है। जमीन से हम उतना ले सकते हैं, जितना चाहिए। गायें उतना दूध दे सकती हैं, जितना चाहिए। मगर हमें उसकी फिक्र ही नहींहै। हम तो बस गऊमाता के भक्त हैं। हमारी गायें दुनिया में सबसे कम दूध देती हैं और हम उनके भक्त हैं। हम दस हजार साल से जय गोपाल, जय गोपाल.. कृष्ण के गीत गा रहे हैं और गउएं? किसी की गऊ अगर तीन पाव दूध देती है तो वह समझता है कि बहुत है। स्वीडन में कोई गाय अगर तीन पाव दूध दे, तो वह कल्पना के बाहर है। पश्चिम में लोग भैंस का दूध नहीं पीते, क्योंकि गायें इतना दूध देती हैं कि भैंस का दूध पीने की जरूरत ही नहीं।
सारी तकनीक उपलब्ध है। धन के सृजन के लिए मशीन की मदद लो। अगर तुम मशीन, रेलगाड़ी, टेलीग्राफ के खिलाफ रहोगे, तो दरिद्र ही रहोगे। दीन ही रहोगे। मशीनों का जितना उपयोग हो, उतना ही अच्छा है। क्योंकि मशीनें जितनी काम में आती हैं, आदमी का उतना ही श्रम बचता है। यह बचा हुआ श्रम किसी ऊंचाई के लिए लगाया जा सकता है। इसे नई खोजों में लगाया जाए। यह नए आविष्कारों में लगे। पृथ्वी सोना उगल सकती है, लेकिन बिना मशीन यह नहीं होगा। देश का औद्योगिकीकरण, यंत्रीकरण होना चाहिए। देश जितना समृद्ध होता है, उतना धार्मिक हो सकता है।
*जगदीश जोशी अभिभाषक*
*इंदौर*
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