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15 वाँ भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन, शंघाई सहयोग संगठन- ड्रैगन-एलीफैंट फ्रेंडशिप:- बदलता एशियाई समीकरण और पश्चिम की बेचैनी

 15 वाँ भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन, शंघाई सहयोग संगठन- ड्रैगन-एलीफैंट फ्रेंडशिप:- बदलता एशियाई समीकरण और पश्चिम की बेचैनी

वैश्विक परिदृश्य-अमेरिका की बेचैनी और एशियाई गठबंधन- भविष्य का परिदृश्य, नई वैश्विक शक्ति- संतुलन की ओर 


भारत रूस और चीन,सबसे बड़ी एशियाई शक्तियाँ, जब एक साथ आती हैं, तो पूरी दुनियाँ के लिए यह किसी बड़े भू-राजनीतिक भूकंप जैसा होगा-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 

गोंदिया- वैश्विक स्तरपर बदलते परिदृश्य में जापान में 29 30 अगस्त 2025 को 15 वाँ भारत- जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन, 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तियानजिन शहर में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में रूस,भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान,ताजिकिस्तान,उज़्बेकिस्तान,ईरान,बेलारूस तुर्की समेत 20 देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंच रहे हैं। जिसमें चीन अपने रक्षा की ताकत दुनियाँ को दिखाएगा। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य आर्थिक परिदृश्य में अमेरिका ने अमेरिकी  फर्स्ट नीति को प्रेशर देते हुए टैरिफ वार शुरू किया है,उसे देखतेहुए भारत चीन रूस गठबंधन  की बहुत बड़ी भूमिका होने की संभावना है,रूस पहले से ही भारत का मित्र देश रहा है,भौगोलिक दृष्टि से:रूस एक महाद्वीपीय देश है जो यूरोप और एशिया -दोनों महाद्वीपों में फैला हुआ है। उसके लगभग 75 पर्सेंट भूभाग एशिया में आता है,जबकि उसकी 25 पेर्सेंट आबादी यूरोप वाले हिस्से में रहती है। इसलिए रूस को यूरो-एशियाई शक्ति कहा जाता है। राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से:रूस की सैन्य शक्ति, परमाणु हथियार, और एशिया के देशों (चीन, भारत, ईरान, मध्य एशिया) के साथ उसके रिश्ते उसे एशियाई भू-राजनीति का अहम हिस्सा बनाते हैं।रूस एशिया में ऊर्जा (तेल-गैस) का प्रमुख स्रोत है। एशिया में शक्ति-संतुलन (विशेषकर अमेरिका-चीन-भारत समीकरण) में रूस की भूमिका हमेशा महत्त्वपूर्ण रहती है। ठीक वैसे ही भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, और चीन की भी अपने क्षेत्रों में बहुत बड़ी दक्षतारखता है, तीनों देशों की शंघाई सहयोग संगठन में बड़ी भूमिका है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्धजानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत रूस और चीन,सबसे बड़ी एशियाई शक्तियाँ, जब एक साथ आती हैं,तो पूरी दुनियाँ के लिए यह किसी बड़े भू-राजनीतिक भूकंप जैसा होगा।वैश्विक परिदृश्य-अमेरिका की बेचैनी और एशियाई गठबंधन- भविष्य का परिदृश्य, नई वैश्विक शक्ति-संतुलन की ओर।

साथियों बात अगर हम भारत- चीन की दोस्ती: एशियाई भू-राजनीति में नई लकीर की करें तो, भारत और चीन, दो सबसे बड़ी एशियाई शक्तियाँ, जब भी साथ आते हैं तो पूरी दुनियाँ के लिए यह किसी बड़े भू-राजनीतिक भूकंप जैसा होता है। लंबे समय से भारत-चीन के बीच मतभेद, सीमा विवाद और रणनीतिक अविश्वास रहा है, लेकिन जब भी दोनों राष्ट्र साझा मंच पर आते हैं, पश्चिमी दुनिया में बेचैनी बढ़ जाती है। अमेरिका और यूरोप मानते हैं कि "ड्रैगन- एलीफैंट फ्रेंडशिप" अगर गहरी हुई, तो यह न केवल एशिया बल्कि पूरी दुनियाँ के शक्ति संतुलन को हिला सकती है।डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका पहले से ही व्यापार युद्ध और टैरिफ नीतियों के ज़रिए चीन और भारत दोनों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत-चीन की संभावित नजदीकी उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन सकती है। एशिया की 2.7 अरब से अधिक की आबादी, दुनियाँ की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ और संयुक्त सैन्य शक्ति, यदि सहयोग में बदल जाएँ तो पश्चिमी देशों की वर्चस्ववादी राजनीति को गंभीर चुनौती दे सकती हैं।यह तथ्य न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से अहम है बल्कि भू-राजनीतिक और सुरक्षा व्यवस्था में भी बड़ा असर डाल सकता है। यदि भारत और चीन तकनीकी सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा और व्यापारिक साझेदारी में हाथ मिलाते हैं, तो अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एशिया में हस्तक्षेप करना और कठिन हो जाएगा। यही कारण है कि वाशिंगटन और लंदन से लेकर टोक्यो और पेरिस तक सभी की निगाहें भारत-चीन समीकरण पर टिकी हैं। 

साथियों बात अगर हम वैश्विक परिदृश्य: अमेरिका की बेचैनी और एशियाई गठबंधन की करें तो,ट्रंप को सबसे बड़ा डर इस बात का है कि भारत-चीन की जुगलबंदी रूस के साथ मिलकर एक ऐसा त्रिकोण बना सकती है, जो अमेरिका की दशकों से चली आ रही वैश्विक प्रभुत्व की नींव हिला दे। भारत-रूस पहले से ही ऊर्जा, रक्षा और व्यापार में गहरे साझेदार हैं। चीन और रूस के बीच भी "नो लिमिट्स पार्टनरशिप" की चर्चा पिछले वर्षों में तेज़ हुई है। अगर इस समीकरण में भारत स्थायी रूप से जुड़ता है, तो यह अमेरिका और यूरोप की रणनीतिक योजनाओं को कमजोर कर देगा। इस संदर्भ में दो बड़े आयोजन खासतौर से चर्चा में हैं। पहला, जापान में 29-30 अगस्त 2025 को होने वाला 15वाँ भारत- जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन, जिसमें भारत की प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति बेहद अहम होगी। इस सम्मेलन का मकसद एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन बनाए रखना और तकनीकी व सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना है। जापान भारत का करीबी मित्र है, लेकिन यदि भारत-चीन की दोस्ती गहरी होती है, तो जापान को अपनी रणनीति को संतुलित करने की चुनौती होगी।दूसरा बड़ा आयोजन है शंघाई सहयोग संगठन समिट, जो 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक आयोजित होने जा रहा है। इसमें भारत, चीन और रूस के शीर्ष नेता एक मंच पर आएँगे। पश्चिमी देशों को सबसे अधिक चिंता इसी सम्मेलन से है, क्योंकि यह मंच पश्चिम-विरोधी नहीं तो कम से कम पश्चिम-नियंत्रण मुक्त दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है। एससीओ की चर्चाएँ अक्सर सुरक्षा सहयोग,ऊर्जा साझेदारी और व्यापारिक गलियारों पर केंद्रित होती हैं, और इस बार जब ट्रंप ने भारत-चीन को लेकर आशंका जताई है,तो उनकी बेचैनी और स्पष्ट नज़र आती है।अमेरिका की चिंता केवल रणनीतिक नहीं है बल्कि आर्थिक भी है। भारत और चीन दोनों ही अमेरिका के लिए बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। अगर दोनों मिलकर व्यापारिक नीतियाँ तय करते हैं और रूस को ऊर्जा साझेदारी में शामिल करते हैं, तो डॉलर के वर्चस्व को चुनौती मिल सकती है। यही कारण है कि ट्रंप और पश्चिमी मीडिया लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि "क्या भारत चीन का साथ देगा?"

साथियों बात अगर हम  भविष्य का परिदृश्य:नई वैश्विक शक्ति- संतुलन की ओर की करें तो, भारत-चीन की दोस्ती का असर केवल एशिया तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि यह वैश्विक भू- राजनीति का नक्शा बदल सकता है। आज की दुनिया बहुध्रुवीय होती जा रही है, और इसमें एशिया की भूमिका पहले से कहीं अधिक बढ़ी है। अगर भारत, चीन और रूस मिलकर किसी साझा आर्थिक ब्लॉक या तकनीकी गठबंधन का निर्माण करते हैं, तो यह जी7 और नाटो जैसी पश्चिमी संस्थाओं को चुनौती देगा।भारत लंबे समय से "रणनीतिक स्वायत्तता" की नीति पर चलता आया है। न तो वह अमेरिका का पूरी तरह साथी बनना चाहता है और न ही चीन का अनुयायी। लेकिन बदलते हालात में भारत के लिए चीन के साथ कुछ मुद्दों पर सहयोग करना उसके राष्ट्रीय हित में हो सकता है। उदाहरण के लिए, ऊर्जा सुरक्षा, तकनीकी विकास, क्लाइमेट चेंज,और आतंकवाद- रोधी अभियानों में सहयोग से भारत को फायदा होगा।पश्चिमी देश मानते हैं कि अगर भारत और चीन का गठबंधन मजबूत होता है, तो वे वैश्विक संस्थाओं में सुधार और पश्चिमी प्रभुत्व को तोड़ने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यह स्थिति अमेरिका को सबसे ज्यादा असहज बनाती है, क्योंकि वह दशकों से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का "निर्माता और नियंत्रक" रहा है।आने वाले दिनों में जापान का शिखर सम्मेलन और एससीओ समिट भारत की इस रणनीति को स्पष्ट करेंगे। अगर मोदी इन मंचों पर संतुलनकारी भूमिका निभाते हैं, तो भारत एशिया का "पावर ब्रोक़र" बन सकता है। वहीं, अगर भारत-चीन-रूस त्रिकोण मजबूत होता है, तो ट्रंप की चिंताएँ सही साबित होंगी और अमेरिका को अपनी एशिया नीति परपुनर्विचार करना पड़ेगा।भविष्य का वैश्विक परिदृश्य यही बताता है कि "ड्रैगन-एलीफैंट फ्रेंडशिप" अब केवल एक संभावना नहीं रही, बल्कि एक ऐसी वास्तविकता बन रही है जिससे दुनिया का नक्शा सचमुच बदल सकता है। अमेरिका और पश्चिमी देशों की बेचैनी इसी बदलाव की आहट है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करेंगे तो हम पाएंगे कि 15 वाँ भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन,शंघाई सहयोग संगठन- ड्रैगन-एलीफैंट फ्रेंडशिप:-बदलता एशियाई समीकरण और पश्चिम की बेचैनी वैश्विक परिदृश्य- अमेरिका की बेचैनी और एशियाई गठबंधन- भविष्य का परिदृश्य, नई वैश्विक शक्ति-संतुलन की ओर भारत रूस और चीन,सबसे बड़ी एशियाई शक्तियाँ, जब एक साथ आती हैं,तो पूरी दुनियाँ के लिए यह किसी बड़े भू-राजनीतिक भूकंप जैसा होगा।


*-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318*

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